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हमारे बारे में

सामाजिक और मानव विज्ञान अनुसंधान, सामाजिक वास्तविकता और उन मुद्दों तथा समस्याओं के बारे में हमारे ज्ञान को बढ़ाता है जिनका समाधान करना आवश्‍यक है। अनुसंधान के क्रियाशील-परिणाम सामाजिक-आर्थिक और सर्वांगीण विकास के लिए नीतिगत इनपुट और रूपरेखा प्रदान करते हैं और ऐसे विचार, तथ्य, अंतर्दृष्टि और कार्यप्रणाली उत्पन्न करते हैं जिनका उपयोग नीति निर्धारण, शिक्षण और अनुसंधान में किया जा सकता है।

भारत में ऋग्वेद (1500 ईसा पूर्व) काल से ही सामाजिक और मानव विज्ञान में विचार उत्पादन की एक लंबी, संचयी और समृद्ध परंपरा रही है। पाणिनि के बाद से बौद्धिक परंपरा ने सामाजिक और सांस्कृतिक अर्थों पर विचार किया है तथा अवलोकन, तार्किक और विवेकपूर्ण सोच के आधार पर ज्ञान प्राप्ति के लिए ज्ञानमीमांसा विकसित की है। तक्षशिला, नालंदा, विक्रमशिला, वल्लभी, पुष्पगिरि और सोमपुरा जैसे शैक्षिक और शोध संस्थान भारत के विभिन्न हिस्सों में विद्या के वैश्विक केंद्रों के रूप में विकसित हुए और आयुर्वेद, चिकित्सा एवं शल्‍य-विद्या, विधि-शास्त्र, गणित, खगोल-विद्या, भौतिकी, धातु-विज्ञान, अभियांत्रिकी, वास्तु-कला, दर्शन-शास्‍त्र, व्याकरण, कृषि-विज्ञान, अर्थशास्त्र, वाणिज्य, राजनीति, शासन-कला, सैन्य-शिक्षा, साहित्य, शिल्प आदि जैसे विविध क्षेत्रों में महान ज्ञान का उत्पादन किया। इन संस्थानों ने दुनिया भर से आने वाले विद्वानों के लिए शिक्षण, शिक्षा एवं शोध के अत्‍यंत उच्च मापदंड रखे थे। इस भारतीय शिक्षा तंत्र के द्वारा कई उच्च कोटि के विद्वान निकले जैसे आर्यभट्ट, भास्कराचार्य, अमरसिंह, चंद्रबरदाई, बाणभट्ट, दण्डिन, जीवक कुमारभक्का, महावीराचार्य, चरक, सुश्रुत, बौधायन, चाणक्य, ब्रह्मगुप्त, पाणिनी, पतंजली, नागार्जुन, पिंगला, गार्गी, कणाद, वराहमिहिर, तिरुवल्लुवर आदि।

स्वतंत्रता के बाद, भारत ने सामाजिक और मानव विज्ञान अनुसंधान के अपने स्वदेशी मॉडल को पुनः प्राप्त करने का प्रयास किया, जिसके लिए शिक्षा और अनुसंधान का वि-उपनिवेशीकरण आवश्यक था। चूंकि देश की विकास प्रक्रिया ने अनेक और विविध चुनौतियां उत्पन्न कीं, जिनके लिए व्यापक शोध और विश्लेषण की आवश्यकता थी, इसलिए भारत सरकार ने 1965 में प्रोफेसर वी.के.आर.वी राव की अध्यक्षता में एक सामाजिक विज्ञान अनुसंधान समिति का गठन किया जिससे देश में सामाजिक विज्ञान अनुसंधान के परिदृश्‍य का आकलन हो तथा विकास को गति देने हेतु अनुशंसाएं की जा सकें। इसके परिणाम स्वरुप देश में सामाजिक विज्ञान अनुसंधान को प्रोत्साहित, विकसित व प्रायोजित करने हेतु 1969 में भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (भा.सा.वि.अ.प.) की स्थापना की गई। स्थापना के बाद से, भा.सा.वि.अ.प. ने अनुदान और परियोजनाओं के साथ-साथ अनुसंधान पद्धतियों में प्रशिक्षण के माध्यम से प्रारंभिक करियर और वरिष्ठ शोधकर्ताओं की क्षमता निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिसका उद्देश्य नीति हस्तक्षेप और नीति निर्माण हेतु उपयोगी उच्च गुणवत्तापूर्ण शोध का उत्पादन करना है। इसने राष्ट्र के कोने-कोने में स्वयं और समाज की संरचनाओं को उपनिवेश-मुक्त करने के तरीके के रूप में मानविकी और सांस्कृतिक अनुसंधान में भी बहुत बड़ा योगदान दिया है।

यह सर्वस्‍वीकार्य है कि समय की मांग के अनुरूप भारत की मात्र 'असाधारणता' का दस्तावेजीकरण करने के अलावा, अंतरतम के दार्शनिक दृष्टिकोण के साथ देश की विविध सामाजिक वास्तविकताओं से जुड़ा जाए जिससे विभिन्न मुद्दों के बारे में मौलिक और नए ज्ञान विकास किया जा सके, नए सिद्धांत और परिप्रेक्ष्य सृजित किए जा सकें और भारत के विभिन्न लोगों की विविध मतों का प्रतिनिधित्व किया जा सके।

21वीं शताब्दी में, जबकि राष्ट्र का उद्देश्य स्वतंत्रता के शताब्दी वर्ष, 2047 तक एक ‘विकसित भारत’ बनना है, भा.सा.वि.अ.प., सामाजिक-अनुसंधान और समाज के बीच एक समरूपता स्थापित करना चाहता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की सिफारिश के अनुरूप हम सामाजिक अनुसंधान को न्यायसंगत, किफायती, समावेशी, सामाजिक रूप से संवेदनशील और वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाना चाहते हैं।

भा.सा.वि.अ.प. एक स्वायत्त निकाय है जो भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत आता है, यह एक उच्च कोटि का संगठन है जिसके अंतर्गत भारत के विभिन्न भागों में स्थित 24 अनुसंधान संस्थान (सहायता-अनुदान), 16 मान्यता प्राप्त क्षेत्रीय अनुसंधान संस्थान तथा 6 क्षेत्रीय केन्द्र आते हैं।

अधिदेश

भा.सा.वि.अ.प. के लक्ष्य एवं उद्देश्य जो हमारी संस्‍था की बहिर्नियम (एमओए) में उल्लिखित हैं, इस प्रकार हैं—

  • सामाजिक विज्ञान अनुसंधान की प्रगति और नीतिगत मुद्दों पर समीक्षा और सर्वेक्षण कर सरकार को सलाह देना।
  • विश्वविद्यालयों/कॉलेजों/ अनुसंधान संस्थानों में सामाजिक विज्ञान अनुसंधान को बढ़ावा एवं वित्तीय सहायता देना।
  • शोधकर्ताओं और संकायों के लिये डॉक्टरेट (पीएचडी), पोस्ट-डॉक्टरल, वरिष्ठ एवं राष्ट्रीय अध्येतावृत्ति प्रदान करना।
  • शोधकर्ताओं तथा संकायों को वृहद् तथा लघु, सहयोगात्मक अनुसंधान परियोजनाओं के लिए अनुदान देना।
  • सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिणामों के प्रसार के लिए राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों और सम्मेलनों को वित्तीय सहायता देना।
  • युवा शोधकर्ताओं और संकायों के लिए प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण संबंधी कार्यक्रमों को प्रायोजित करना व आर्थिक सरंक्षण देना।
  • विद्वानों तथा संकायों को अंतर्राष्ट्रीय यात्राओं और आकड़ों के संग्रहण हेतु अनुदान प्रदान करना।
  • विभिन्न देशों और वित्त पोषण एजेंसियों के साथ सामाजिक विज्ञान अनुसंधान के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को प्रोत्साहित करना।
  • पत्रिकाओं, पुस्तकों के प्रकाशन और व्यावसायिक सामाजिक विज्ञान संघों व संगठनों को मजबूत बनाना।
  • सामाजिक विज्ञान अनुसंधान के लिए पुस्तकालय, प्रलेखन, डेटा और ऑनलाईन सेवाएं उपलब्ध कराना एवं
  • अनुसंधान के उपेक्षित और नए महत्वपूर्ण क्षेत्रों में समसामायिक विषयों को सामने लाना।

संगठनात्मक सरंचना:

भा.सा.वि.अ.प. की प्रमुख उच्चतम निर्णायक समिति जिसे हम परिषद के रुप में जानते हैं, उसमें कुल 26 सदस्य हैं, जिसमें भा.सा.वि.अ.प. के अध्‍यक्ष एवं सदस्य सचिव, 17 सामाजिक वैज्ञानिक, एक सहयोजित सदस्य तथा छह पदेन सदस्य हैं जो भारत सरकार का प्रतिनिधित्व करते हैं।

सदस्य सचिव, मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं जो भा.सा.वि.अ.प. सचिवालय, जिसके अंतर्गत निदेशक, उप-निदेशक, सहायक निदेशक एवं अन्य अधिकारी सम्मिलित हैं, के प्रमुख हैं। भा.सा.वि.अ.प. के अधिकारी अपने सामान्य कार्यालयीन कार्यों के साथ-साथ शोध-पत्रों, लेखों, संशोधित पुस्तकों के लेखों, पत्रिकाओं आदि में अपना योगदान देते रहते हैं, साथ ही इस प्रतिवेदित वर्ष में उन्होंने व्याख्यान भी दिए हैं।

परिषद की तीन स्थायी समितियां हैं, अनुसंधान समिति (आरसी), अनुसंधान संस्थान समिति (आरआईसी) एवं योजना व प्रशासन समिति (पीएसी)