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भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद के द्वारा 24 शोध संस्थानों को रखरखाव और विकास अनुदान प्रदान किया जाता है। सामाजिक विज्ञान के ज्ञान-आधार को बढ़ाने, अनुसंधान की गुणवत्ता में सुधार करने और अंतःविषयक परिप्रेक्ष्य को बढ़ावा देना, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के दायरे से बाहर अनुसंधान संस्थानों को प्रायोजित करना, परिषद के प्रमुख कार्यक्रमों में शामिल है। ये संस्थान देश के विभिन्न क्षेत्रों में अनुसंधान प्रतिभाओं के प्रसार और अनुसंधान क्षमताओं के निर्माण की परिषद की नीति को लागू करने की प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण प्रणाली का गठन करते हैं विशेषकर उन क्षेत्रों में जहां सामाजिक विज्ञान अनुसंधान अभी तक पूर्ण रूप से विकसित नहीं हुआ है।
अनुसंधान संस्थानों ने सेमिनार, कार्यशालाओं और प्रशिक्षण एवं परामर्श कार्यक्रमों जैसी विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से स्‍थानीय क्षेत्र के साथ-साथ अन्य जगहों के विद्वानों के साथ घनिष्ठ संबंध स्थापित किए हैं। कुछ संस्थान राष्ट्रीय और राज्य स्‍तरीय योजना और विकास एजेंसियों के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं, और इस प्रकार उन्होंने शोध और नीति निर्माण के बीच संबंधों को मजबूत किया है।

प्रत्येक संस्थान अपने अनुसंधान की दिशा स्वयं निर्धारित करता है जिसमें कृषि और ग्रामीण विकास, औद्योगिक संरचना और विकास, आय वितरण और गरीबी, रोजगार और मजदूरी, विकास के स्तरों में अंतर-क्षेत्रीय भिन्‍नताएं, शिक्षा, महिलाओं सहित स्वास्थ्य, पोषण एवं समाज के कमजोर वर्गों की समस्याएं, ऊर्जा, प्रौद्योगिकी, पारिस्थितिकी और पर्यावरण, तथा विकास के सामाजिक, सांस्कृतिक और संस्थागत पहलुओं से संबंधित विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है। इस प्रकार, अनुसंधान अध्ययनों ने राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दोनों स्तरों पर भारतीय अर्थव्यवस्था, राजनीति और समाज की संरचना और उनकी गतिशीलता के बारे में पर्याप्त अनुभवजन्य ज्ञान उत्पन्न किया है।

Research Institutes

पिछले पांच वर्षों के दौरान संस्थानों द्वारा 1452 अनुसंधान परियोजनाएं पूर्ण की गई हैं, जबकि 1829 अभी भी चल रही हैं। इनमें उन क्षेत्रों से संबंधित मुद्दों की एक विस्तृत श्रृंखला शामिल है जिनका उल्‍लेख पहले ही ऊपर किया जा चुका है। इन प्रयासों में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि ये न केवल अंतःविषयक प्रकृति के हैं, बल्कि क्षेत्रीय और स्थानीय समस्याओं पर भी ध्यान केंद्रित करते हैं। इस प्रक्रिया में, वे क्षेत्र के विशिष्ट मुद्दों हेतु अनुसंधान के केंद्र बन गए हैं और संपूर्ण रूप से देश की क्षमता एवं विकास संबंधी समस्याओं और प्रकृति के बारे में जागरूकता बढ़ाने में बहुत महत्‍वपूर्ण योगदान दिया है। प्रकाशनों के संदर्भ में, संस्थानों ने पिछले पांच वर्षों के दौरान 591 पुस्तकें और 1271 कार्य पत्र प्रकाशित किए हैं।

एक अन्य महत्वपूर्ण गतिविधि, जिसे परिषद ने महत्व दिया है, उनमें अनुसंधान संस्‍थानों द्वारा एम.फिल. और पीएच.डी. कार्यक्रमों, कार्यशालाओं तथा सेमिनारों के माध्यम से युवा सामाजिक वैज्ञानिकों को प्रशिक्षण प्रदान करना शामिल है। पिछले पांच वर्षों के दौरान, 121 पीएचडी तैयार किए गए हैं और 787 विद्वान अपनी पीएचडी पर कार्य कर रहे हैं।

परिषद अनुसंधान संस्थानों द्वारा किए गए अनुसंधान और प्रशिक्षण प्रयासों को प्रोत्‍साहन देने में अपनी भूमिका पर वस्‍तुत: गर्व कर सकती है। रिपोर्ट के अंतर्गत वर्ष के दौरान इन संस्थानों में 325 परियोजनाएं पूर्ण की गई। वर्ष के अंत में चल रहे अध्ययनों की कुल संख्या 423 थी।

अनुसंधान संस्थान अपने अनुसंधान अध्ययनों के परिणामों को पुस्तकों, मिमियोग्राफ, कार्यकारी/समसामयिक पत्रों आदि के रूप में प्रकाशित/प्रसारित करते हैं। वर्ष के दौरान प्रकाशित पुस्तकों की संख्या 113 थी जबकि मोनोग्राफ/मिमियोग्राफ 14 और कार्यकारी/समसामयिक पत्रों और लेखों की संख्या 314 थी। प्रकाशित शोध पत्रों की संख्या 1028 थी।

संस्थान युवा सामाजिक वैज्ञानिकों को प्रशिक्षण भी देते हैं और नए अनुसंधानकर्ताओं को उनके अनुसंधान की रूपरेखा तैयार करने और उसे संचालित करने में सहायता करते हैं। इस उद्देश्य के लिए इन संस्थानों को डॉक्टरेट अध्‍येतावृत्तियां प्रदान की गई है। कुछ संस्थान एम.फिल. और पीएच.डी. विद्यार्थियों के लिए शिक्षण एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों में सहायता कर रहे हैं। इसके अतिरिक्‍त, परिषद की नीति के अनुसार, वे विश्वविद्यालयों में स्नातकोत्तर शिक्षण, अनुसंधान मार्गदर्शन में भाग लेते हैं और अपने अनुसंधान कार्यक्रमों में विश्वविद्यालय के शिक्षकों को भी शामिल करते हैं। अनुसंधान संस्थानों के संकायों के मार्गदर्शन में कार्यरत बीस विद्वानों को पीएच.डी. की उपाधि प्रदान की गई। चालीस विद्वानों ने अपने डॉक्टरेट अनुसंधान प्रबंध प्रस्तुत किए। वर्ष 2005-2006 के दौरान 1007 सेमिनार और कार्यशालाएँ आयोजित की गई।

ए.एन. सिन्हा सामाजिक अध्ययन संस्थान, पटना, का ध्यान बिहार और पूर्वी क्षेत्र की समस्याओं के विशेष संदर्भ में विकास पर है। विकास के लिए इसका दृष्टिकोण सामुदायिक पहल पर बल देता है। संस्थान द्वारा गरीबी उन्मूलन, ग्रामीण विकास, बाल विकास, आर्थिक नीति, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति अध्ययन, महिलाओं की भूमिका और समाज में उनकी स्थिति, बदलते प्रौद्योगिकी का प्रभाव, सामाजिक स्‍तर-विन्‍यास और कृषि, राज्य की राजनीतिक अर्थव्यवस्था आदि से संबंधित कई अध्ययन किए गए हैं। इस अवधि के दौरान, 13 अध्ययन पूरे किए गए जबकि 6 प्रगति पर हैं। संकाय द्वारा विभिन्न पत्रिकाओं में छह लेख प्रकाशित किए गए। इस अवधि के दौरान तीन पुस्तकें भी प्रकाशित हुई। इसके अलावा, संस्थान ने अपनी पत्रिका, सामाजिक और आर्थिक अध्ययन भी प्रकाशित किया।

विकास अध्ययन केंद्र, तिरुवनंतपुरम की शोध गतिविधियों में मानव विकास में सार्वजनिक नीति, कृषि अर्थव्यवस्था, श्रम और विकास प्रौद्योगिकी, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, सामुदायिक सिंचाई, महिलाओं के विरूद्ध हिंसा, बैंकिंग क्षेत्र में सुधार, श्रम और विकास, वृहद आर्थिक समायोजन नीतियां, जनसंख्या और भूमि उपयोग, कृषि सुधार और भूमि वितरण अनुभव आदि को प्राथमिकता दी जाती है। 63 अध्ययन पूरे हो चुके हैं, जबकि 45 अध्ययनों पर कार्य चल रहा है। चार छात्रों को पीएचडी की डिग्री प्रदान की गई और 30 अपनी पीएचडी डिग्री के लिए कार्य कर रहे हैं। 5 पुस्तकें प्रकाशित की गई। संकाय द्वारा 16 लेख प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित किए गए। केन्द्र/ संकाय ने 100 सेमिनारों/ सम्मेलनों और कार्यशालाओं का आयोजन किया/ उनमें भाग लिया/ शोधपत्र प्रस्तुत किए।

आर्थिक और सामाजिक अध्ययन केंद्र, हैदराबाद की शोध गतिविधियाँ आंध्र प्रदेश की आर्थिक और सामाजिक समस्याओं के आसपास केंद्रित रहती हैं। वर्ष के दौरान, केंद्र ने सिंचाई प्रबंधन, जनजातीय विकास कार्यक्रम, स्वास्थ्य क्षेत्र सुधार, सतत विकास ढांचे, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली, कृषि, सामाजिक सुरक्षा, गरीबी उन्मूलन, पुनरूद्धार और पुनर्वास तथा रोजगार पर अपना कार्य केंद्रित किया। केंद्र ने दो शोध परियोजनाएँ पूर्ण किए और 23 अध्ययन प्रगति पर हैं। संकाय ने एक पुस्तक प्रकाशित की। 5 विद्वानों को पीएचडी की डिग्री प्रदान की गई।

बहु-विषयक विकास अनुसंधान केन्द्र, धारवाड़, की मुख्य गतिविधियां प्रारंभिक शिक्षा की लागत और वित्तपोषण, बालिका साक्षरता, स्वास्थ्य संकेतक, तंबाकू से अर्थशास्त्र में परिवर्तन, ऑपरेशन ब्लैकबोर्ड का वित्तीय प्रबंधन, व्यापार और पर्यावरण तथा शिक्षा के विकास में समुदाय के योगदान पर केंद्रित थीं। समीक्षाधीन अवधि के दौरान, संस्थान ने 3 शोध परियोजनाएं पूर्ण कीं और 9 परियोजनाएं पूरी होने के विभिन्न चरणों में थीं। दो विद्वानों को पीएचडी की डिग्री प्रदान की गई। छह विद्वान अपनी पीएचडी कर रहे थे। केंद्र ने नौ सेमिनार आयोजित किए। संकाय द्वारा तीन मोनोग्राफ प्रकाशित किए गए और उनके द्वारा पांच सामयिक शोधपत्र भी प्रस्तुत किए गए।

नीति अनुसंधान केंद्र, नई दिल्ली, के अध्ययनों का केंद्र-बिंदु शासन की समस्याएं, सुरक्षा नीति, प्रवासन और जनसांख्यिकीय परिवर्तन की नीतियों, राजनीति और विकेंद्रीकरण की प्रगति, शहरीकरण का भविष्य, आर्थिक उदारीकरण, सामाजिक हिंसा, वैश्वीकरण, कूटनीति और राष्ट्रीय सुरक्षा आदि पर था। वर्ष के दौरान, केंद्र ने 24 परियोजनाओं को पूरा किया और 15 पूरी होने के विभिन्न चरणों में हैं। संकाय ने 27 पुस्तकें और दो शोध पत्र तथा प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में 219 लेख प्रकाशित किए। केंद्र ने वर्ष के दौरान 139 सेमिनार/कार्यशालाएं/चर्चाएं भी आयोजित कीं।

ग्रामीण और औद्योगिक विकास अनुसंधान केंद्र, चंडीगढ़ जनसंख्या पुनर्वास, शिक्षा और विकास, प्रवास, शहरी विकास, महिला विशिष्ट योजनाओं के प्रभाव, मॉडल ग्राम योजना, प्रजनन और बाल स्वास्थ्य आदि पर अनुसंधान करता है। वर्ष के दौरान केंद्र ने आठ परियोजनाओं को पूरा किया और नौ परियोजनाएं पूर्ण होने के विभिन्न चरणों में हैं। इसके अतिरिक्त, केंद्र ने वर्ष के दौरान 41 व्याख्यान/सेमिनार और प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए। संकाय द्वारा प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में 35 शोध पत्र/लेख प्रकाशित किए गए।

गुजरात विकास अनुसंधान संस्थान, अहमदाबाद में अनुसंधान मुख्य रूप से शैक्षिक प्रोत्साहन योजनाओं, वयस्क साक्षरता, पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण, परिधीय अर्थव्यवस्था पर औद्योगीकरण के प्रभाव, महिला श्रमिकों और विकास, अनौपचारिक विनिर्माण क्षेत्र और अर्थव्यवस्था का योगदान, गुजरात में नमक उद्योग के कामकाज और शुष्क भूमि क्षेत्र में निवेश पर केंद्रित रहा है। वर्ष के दौरान, संस्थान ने चार शोध परियोजनाओं को पूरा किया और सात अध्ययन कार्य प्रगति पर हैं। संस्थान के संकाय ने प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में एक पुस्तक और कई लेख/शोध पत्र प्रकाशित किए। केंद्र/संकाय ने 85 सेमिनारों/सम्मेलनों/कार्यशालाओं में शोध पत्र आयोजित/प्रस्तुत किए।

सामाजिक विज्ञान अध्ययन केंद्र, कोलकाता, ने समाज की आर्थिक और सामाजिक समस्याओं पर अपने कार्य को करना जारी रखा। जिन परियोजनाओं पर सबसे ज्‍यादा ध्यान दिया गया, उनमें भारतीय अर्थव्यवस्था पर वैश्वीकरण का प्रभाव, औद्योगिक वित्त, शहरी लोकप्रिय संस्कृति, लघु उद्योगों में कम निवेश की समस्याएँ, शरणार्थी बस्तियों का मूल्यांकन और बंगाल में अफ़वाह और सांप्रदायिक संघर्ष शामिल थे। वर्ष के दौरान, 28 परियोजनाओं को पूरा किया गया और 45 प्रगति पर हैं। केंद्र ने दो पुस्तकें प्रकाशित कीं। इस अवधि के दौरान, सात कार्यशालाएँ/व्याख्यान/सेमिनार आयोजित किए गए। संकाय ने प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में 49 शोध पत्र और लेख प्रकाशित किए।

विकासशील समाज अध्ययन केंद्र, दिल्ली में अनुसंधान के मुख्य विषय लोकतांत्रिक राजनीति एवं उसका भविष्य, संस्कृति और ज्ञान की राजनीति, विकास हेतु शांति, सुरक्षा और आर्थिक सहयोग, जातीयता और विविधता, राजनीतिक प्रणाली और मतदान आचरण, हिंसा, जातीयता और विविधता, आपदा प्रबंधन और राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रतिमान रहे हैं। वर्ष के दौरान, सात परियोजनाओं को पूरा किया गया और 27 अध्ययन कार्य प्रगति पर हैं। केंद्र ने 20 पुस्तकें प्रकाशित कीं। केंद्र ने 36 सेमिनार/वार्ता/व्याख्यान/चर्चाएँ भी आयोजित कीं। संकाय ने प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में 347 रिपोर्ट/शोध पत्र/लेख प्रकाशित किए।

सामाजिक विकास परिषद, हैदराबाद की अनुसंधान गतिविधियों का ध्यान गरीबी का निदान, पंचायती राज संस्थाओं, मानव विकास, औद्योगिक समूहों और साक्षरता के बार कार्यक्रम के मूल्यांकन पर रहा है। रिपोर्ट की अवधि के दौरान, परिषद ने छह परियोजनाओं को पूरा किया और दो परियोजनाएं प्रगति पर हैं। परिषद के संकाय ने प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में तीन पुस्तकें और 17 शोध लेख प्रकाशित किए। परिषद/ संकाय ने 18 सेमिनारों/ सम्मेलनों/ कार्यशालाओं/ व्याख्यानों का आयोजन/उनमें सहभागिता की।